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मिथिला के तर्ज पर तर्ज पर मिथिला की पौराणिक परंपरा झिझिया आज भी है रोचक

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शिवहर—– जिले में 9 दिन के नवरात्र यानी शारदीय नवरात्र के अवसर पर मिथिला का एक प्रमुख लोक नृत्य में झिझिया भी शामिल है। हालांकि तेजी से बदल रहे इस परिवेश में बिहार के कई लोक नृत्य लगभग विलुप्त हो रही है जिसमें झिझिया भी शामिल है।
आज भी मिथिला का प्रसिद्ध झिझिया शिवहर जिले में शहर के अलावा देहाती क्षेत्र में झिझिया उत्सव जैसा माहौल में महिला गीत गाती है। दुर्गा पूजा के मौके पर इस नृत्य में लड़कियां बढ़कर हिस्सा लेती है ।इस नृत्य में कुमारी लड़कियों और महिलाएं अपने सिर पर छिद्र वाला घड़ा में जलते दिए रखकर नाचती है।
झिझिया नृत्य राजा चित्रसेन एवं उनकी रानी के प्रेम प्रसंग पर आधारित है। डायन से बचने के लिए मनाया जाता है झिझिया त्यौहार।
ग्रामीण मान्यता अनुसार इस गीत में तंत्र-मंत्र के बुरे प्रभाव से बचने के लिए लड़कियां गीत गाकर अपने इष्ट देव को आमंत्रित करती है ताकि वे आए और डायन जोगिन के बुरे प्रभाव से जनमानस को बचाएं।
इस नृत्य में सभी एक साथ ताली वादन के साथ पग से पग मिलकर चलने ,व थिरकने से जो समां बनता है वह अत्यंत ही आकर्षक होता है ।महिलाएं एवं बच्चियां एक दूसरे से समन्वय स्थापित कर नृत्य का प्रदर्शन करती है।
हालांकि झिझिया त्यौहार में अभी भी मनाया जाता है,लेकिन जीरो माइल चौक पर लक्ष्मीपुर पूजा समिति के द्वारा रात के तकरीबन 9 बजे मोहल्ले के लड़कियों द्वारा प्रतिदिन झिझिया खेली जा रही है। जिसको देखने के लिए लोगों की भी इकट्ठा हो जाती है। वहीं कल शाम में राजस्थान चौक पर लड़कियों की एक टोली ने दुकानें -दुकानें जाकर झिझिया के गीत गाकर पौराणिक एवं पारंपरिक गीत को प्रदर्शन कर रही ।

गजेंद्र कुमार सिंह जिला संवाददाता शिवहर

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