भारतीय निर्माण श्रमिकों, नर्सों को युद्ध क्षेत्र इजराइल भेजने के मोदी सरकार के फैसले का पुरजोर विरोध करो- रणविजय कुमार
😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊
|
लक्ष्मी प्रसाद
पटना | रणविजय कुमार/शशि यादव/आरएन ठाकुर ऐक्टू राष्ट्रीय सचिव ने प्रेस बिज्ञाप्ति जारी करते हुए केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है की गलत तरीके से,15-सदस्यीय इजरायली टीम हरियाणा से भारतीय निर्माण श्रमिकों को लेने के लिए 15 जनवरी को भारत पहुंची, जिस दिन इजरायल फिलिस्तीन युद्ध अपने 100वें दिन में प्रवेश कर रहा था. हजारों फिलिस्तीनी श्रमिकों के वर्क परमिट को रद्द करने के बाद, मोदी सरकार ने इजरायल में कुछ विशिष्ट श्रम बाजार क्षेत्रों में भारतीय श्रमिकों को लगाने के लिए इजरायल के साथ एक समझौता किया.
भारतीय मजदूरों का अमानवीयकरण और वस्तुकरण चरम पर पहुंच गया है जब हरियाणा और यूपी सरकारों ने हजारों मजदूरों को निर्माण और स्वास्थ्य देखभाल के लिये इज़रायल भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी, जिसमें आमतौर पर विदेश, खासकर युद्ध क्षेत्रों में, जाने वाले भारतीय श्रमिकों के लिए अपनाई जाने वाली सभी सुरक्षाओं को दरकिनार कर दिया गया है. भारत और इज़रायल सरकार के बीच समझौते पर कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं.
राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीएल) ने अपने पोर्टल में उल्लेख किया है कि वेतन लगभग 1.37 लाख रुपये प्रतिमाह है जिसमें से आवास, भोजन और चिकित्सा बीमा लागत में कटौती कर ली जाएगी.
आधिकारिक प्रचार दस्तावेजों में संविदात्मक सुरक्षा का कोई विवरण नहीं दिया गया है, एनएसडीसी द्वारा सुविधा शुल्क के रूप में प्रति कर्मचारी 10,000 रुपये लिए जाने के अलावा, श्रमिकों को इज़रायल के लिए अपने टिकट के लिए भी भुगतान करना होगा. इज़रायल जाने वाले श्रमिकों को बीमा, चिकित्सा कवरेज और रोजगार गारंटी जैसी हर श्रम सुरक्षा से वंचित किया जाएगा.
भारतीय निर्माण श्रमिकों, नर्सों और देखभाल करने वालों को युद्ध क्षेत्र में भेजने के केंद्र सरकार के फैसले का, वह भी तब जब इजरायल द्वारा गाजा में नरसंहारी युद्ध छेड़ा जा रहा है, इसका पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए. जब यह कहा जाता है कि इन श्रमिकों को ‘ई-माइग्रेट’ पोर्टल पर भी किसी पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है, जो दूसरों के लिए अनिवार्य है, तो यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि सरकार ने इन श्रमिकों के कल्याण और सुरक्षा के प्रति जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया है.
ऐक्टू श्रमिकों को निर्यात करने और खरीद-फरोक्त की वस्तु बनाने और उनके साथ ठेका गुलामों जैसा व्यवहार करने के मोदी सरकार के इस कदम की घोर निंदा करता है!
भारतीय निर्माण श्रमिकों और स्वास्थ्य देखभाल करने वालों को बिना किसी सुरक्षा और कल्याण के युद्ध-ग्रस्त स्थल पर भेजना सरकार की ओर से एक आपराधिक कार्रवाई के अलावा और कुछ नहीं है!
ऐक्टू इस तरह के अनैतिक व शर्मनाम कदम को तत्काल वापस लेने और इजरायल के साथ उक्त समझौते को रद्द करने की मांग करता है!
हम सभी श्रमिकों से ऐसी ‘आत्मघाती परियोजनाओं’ को नकारने का आहृान करते हैं जो उनके जीवन के लिए अत्यधिक कठिनाइयां और जोखिम पैदा करेंगी!

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space
