शिवहर जिले में सबसे पहले 188 वर्ष पुराना मंदिर दस महाविद्या मंदिर में हुई मां के तीसरे रूप चंद्रघंटा की पूजा

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हिंदू धर्म के अनुसार शिवहर के राजा स्वर्गीय शिवराज नन्दन सिंह बहादुर ने 1854 में काली मंदिर दस महाविद्या शक्तिपीठ स्थापित करायें
इसमें सनातन धर्म को प्राथमिकता मिला जिले में बहुत ही रहस्यमय मंदिर में शिवहर राज दरबार के स्वर्गीय राजा गिरीश नंदन सिंह बहादुर एवं उनकी दुसरी पत्नी स्वर्गीय रानी राम अनुग्रह देवी छोटी रानी की तस्वीर भी लगा हुआ है
शिवहर—- जिले में 1854 में शिवहर के राजा स्वर्गीय राजा गिरीश नंदन सिंह बहादुर द्वारा जिले के सबसे प्राचीन काली मंदिर दस महाविद्या मंदिर (शक्तिपीठ) की स्थापना की गई थी। आज पूरे विधि विधान के साथ भगवती के तीसरे रूप मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की गई है।
शिवहर जिले के 121 पूजा पंडाल समितियां में तथा हिंदू परिवारों के लगभग सभी घरों में मां दुर्गा के तीसरे रूप की पूजा की जा रही है।
जिले के सबसे प्राचीन कालीन मंदिरों में से एक मंदिर दस महाविद्या मंदिर 188 वर्ष पुराना मंदिर बताया जा रहा है। शिवहर राज दरबार के अंतिम राजा स्वर्गीय गिरीश नंदन सिंह बहादुर एवं उनकी पत्नी पहली पत्नी स्वर्गीय रानी विशाखा कुंवर थी। तथा उनकी दूसरी पत्नी स्वर्गीय रानी राम अनुग्रह देवी (छोटी रानी) की तस्वीर आज भी उक्त मंदिर में लगाया गया है।
शिवहर राज दरबार के गोविंद नंदन सिंह ने बताया है कि नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन आराधना किया गया है। इनका यह स्वरूप परम शांति दायक और कल्याणकारी है ।इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है इसी कारण से इन्हें चंद्रघटा देवी कहा जाता है।
मां भगवती के तीसरे रूप की पूजा अत्यधिक महत्व है। इस दिन साधक का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट होता है। मां चंद्रघंटा की कृपा से उसे अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं ।मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं विनिष्ट हो जाती है ।इनकी आराधना सद्द: फलदाई है। हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधना की ओर अग्रसर होने के प्रयत्न करना चाहिए ।इनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए परम कल्याणकारी और सद्गति को देने वाला होता है।
गजेंद्र कुमार सिंह जिला संवाददाता शिवहर

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