‘लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों की ओर’ अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान सम्मेलन का राष्ट्रपति ने किया उद्घाटन

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नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर सलाहकार समूह (सीजीआईएआर) जेंडर इम्पैक्ट प्लेटफॉर्म और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा आयोजित ‘अनुसंधान से प्रभाव तक: न्यायसंगत और लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों की ओर’ विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान सम्मेलन का राष्ट्रपति ने उद्घाटन किया।
इस अवसर पर अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि यदि कोई समाज न्याय रहित है, तो समृद्धि के बावजूद उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि जब स्त्री-पुरुष समानता की बात आती है, तो सबसे पुरातन विज्ञान के रूप में पहचानी जाने वाली कृषि, आधुनिक समय में भी कमजोर स्थिति में है। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी ने कृषि-खाद्य प्रणालियों और समाज में संरचनात्मक असमानता के बीच एक सुदृढ़ संबध को भी सामने ला दिया है। उन्होंने कहा कि महामारी के दिनों में पुरुषों की तुलना में, महिलाओं को अधिक संख्या में नौकरियां गंवानी पड़ीं और इससे उनका प्रवासन शुरू हुआ।
वैश्विक स्तर पर हमने देखा है कि महिलाओं को लंबे समय तक कृषि-खाद्य प्रणालियों से बाहर रखा गया है। उनकी भूमिका को हाशिए पर रखा गया है और कृषि-खाद्य प्रणालियों की पूरी श्रृंखला को नकारा गया है। अब इस कहानी में परिवर्तन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत में, हम विधायी और सरकारी हस्तक्षेपों के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ उन परिवर्तनों को देख रहे हैं।आधुनिक महिलाएं “अबला” नहीं बल्कि “सबला” हैं, यानी असहाय नहीं बल्कि शक्तिस्वरूपा हैं। उन्होंने कहा कि हमें न केवल महिला विकास बल्कि महिला नेतृत्व वाले विकास की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमारी कृषि-खाद्य प्रणालियों को अधिक न्यायसंगत और समावेशी बनाना न केवल वांछनीय है बल्कि ग्रह और मानव जाति के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण भी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक अस्तित्वगत खतरा है और हमें तेजी से और तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, बर्फ के पिघलने और प्रजातियों के विलुप्त होने से खाद्य उत्पादन में बाधा आ रही है और कृषि-खाद्य चक्र भी टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। यह जलवायु परिवर्तन की कार्रवाई में बाधा डाल रहा है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का कारण बन रहा है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हमारी कृषि-खाद्य प्रणालियां एक दुष्चक्र में फंस गई हैं और हमें इस “चक्रव्यूह” को तोड़ने की जरूरत है। उन्होंने जैव विविधता बढ़ाने और पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया ताकि सभी के लिए अधिक समृद्ध और न्यायसंगत भविष्य के साथ-साथ कृषि-खाद्य प्रणालियों के माध्यम से खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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