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बिहार के अपराधियों ने सात साल में सात पत्रकारों की ली जान

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राकेश प्रवीर , प्रदेश अध्यक्ष, एन यू जे, बिहार
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बिहार में पिछले सात सालों (2016-2023) में सात पत्रकारों की हत्या की जा चुकी हैं. इसके अलावा, पत्रकारों पर हमले के कई मामले दर्ज हैं. ताजा मामला अररिया के पत्रकार विमल यादव (18-08-2023) की हत्या का है। पत्रकारों पर हुए कातिलाना हमले, जान से मारने की धमकी आदि की फेहरिस्त काफी लंबी है.

*सभी पत्रकारों की हुई है गोली मार कर हत्या*

पिछले सात सालों में जिन सात पत्रकारों की हत्या हुई है, उनमें एक समानता है. सभी पत्रकारों की गोली मार कर ही हत्या हुई है. अब इनमें नया नाम अररिया के विमल यादव का जुड़ गया है। सीतामढ़ी जिले के अजय विद्रोही, गया जिले के मिथिलेश पांडेय, रोहतास जिले के धमेंद्र सिंह, समस्तीपुर के ब्रजकिशोर ब्रजेश और सीवान के राजदेव रंजन ऐसे पत्रकार थे जिन्हें अपराधियों ने सीधे अपनी गोलियों का निशाना बना कर मौत के घाट उतारा था. इसका सीधा मतलब है कि पूर्व नियोजित हत्या के इरादे से ही इन सभी को निशाना बनाया गया और हर बार अपराधी अपने मकसद में कामयाब रहे. एक बात और स्पष्ट है कि भू, दारू, बालू माफिया के साथ ही सत्ता जनित आपराधिक गठजोड़ का भी पत्रकार हमेशा से सॉफ्ट टारगेट रहे हैं।

सीतामढ़ी जिले के पत्रकार अजय विद्रोही को स्थानीय बसुश्री चौक के पास सरेआम दो अपराधियों ने दौड़ाकर गोली मार दी थी. घटना उससमय घटी जब वह बाजार से रात करीब दस बजे घर लौट रहे थे. अपराधियों ने उनके सीने में गोली मार दी थी. स्थानीय लोग उन्हें तुरंत अस्पताल ले गये, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था. अजय विद्रोही दो दशकों से ज्यादा समय तक पत्रकारिता से जुड़े रहे. वह काफी हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के थे.

गया जिले के परैया थाने के कष्ठा गांव निवासी पत्रकार मिथिलेश पांडेय को अपराधियों ने उनके घर में घुस कर गोली मार कर हत्या कर दी थी. पूर्व उपमुखिया करोड़पति देवी के पुत्र मिथिलेश को अपराधियों ने उस समय गोली मारी, जब वे अपने घर के एक कमरे में आराम कर रहे थे. उनके कमरे में दो अपराधी घुसे और अंदर प्रवेश करते ही उन पर दो गोलियां दाग दीं. परिजनों ने उन्हें मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भरती कराया. लेकिन, अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया.

रोहतास जिले में पत्रकार धर्मेंद्र सिंह को उससमय अपराधियों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी, जब वह सुबह अपने घर के पास एक चाय की दुकान पर बैठ कर चाय पी रहे थे. बाइक पर सवार तीन अपराधियों ने घटना को अंजाम दिया था. अपराधियों ने उनके सीने में गोली मारी और उसके बाद फरार हो गये थे. घटना के बाद लोगों ने पत्रकार को तत्काल अस्पताल पहुंचाया. चिकित्सकों ने पत्रकार की स्थिति को गंभीर देखते हुए बेहतर इलाज के लिए वाराणसी रेफर कर दिया. वाराणसी पहुंचने से पहले ही धर्मेंद्र सिंह की मौत हो गयी.

सीवान के पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी. सीवान के महादेवा मिशन कंपाउंड मोहल्ला निवासी 46 वर्षीय राजदेव रंजन रात करीब आठ बजे कार्यालय से घर लौट रहे थे. इसी दौरान दो बाइक पर सवार अपराधियों ने राजदेव को काफी करीब से गोली मार दी थी. एक गोली उनके सिर और दूसरी गर्दन में लगी थी. गंभीर रूप से जख्मी राजदेव रंजन को पुलिस अस्पताल ले गयी, लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गयी थी. घटना को अंजाम देकर अपराधी भागने में कामयाब रहे थे.

समस्तीपुर के विभूतिपुर प्रखंड निवासी पत्रकार ब्रजकिशोर ब्रजेश को अपराधियों ने अत्याधुनिक स्वचालित हथियार से छह गोलियां मार दी थीं. गोलियां उनकी कनपट्टी, सीना, पेट आदि कई स्थानों पर लगी थीं. इससे उनकी मौके पर ही मौत हो गयी थी. ब्रजेश की ईंट भट्ठा की चिमनी भी थी. जख्मी ब्रजेश को पीएचसी विभूतिपुर लाया गया, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. बोलेरो से आये चार अपराधी चिमनी में घुस गये और स्वचालित हथियार से फायरिंग कर फरार हो गये थे.

18 अगस्त, 2023 की अहले सुबह घर के दरवाजे पर कमरे में सो रहे पत्रकार विमल यादव को बुलाकर अपराधियों ने सीधे उनके सीने में गोली दाग दी, जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई. इस मामले में भी अपराधी हत्या की घटना को अंजाम देने के बाद आराम से फरार हो गए.

बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने हाल ही एक बयान देकर बिहार में बढ़ रहे अपराध की घटना से सम्बंधित प्रश्न को सिरे से नकार दिया और कहा कि कहां अपराध हो रहा है, यहाँ तो बाकी राज्यों से काफी कम है. सम्भवतः वे आंकड़ों के जरिए बिहार में बढ़ी आपराधिक घटनाओं के बाबत पूछे गए सवाल से पाला झाड़ रहे थे. अपराध की बाकी घटनाओं की चर्चा करना यहां मेरा अभीष्ट नहीं है. बात पत्रकारों की हत्या की हो रही है. अब तक जितनी हत्याएं हुई है, उनके मॉड ऑफ अप्रेन्टिस पर गौर करें तो एक बात बिल्कुल स्पष्ट है विगत छह- सात सालों में जितने भी पत्रकारों की हत्या हुई हैं, उन्हें निशाना बनाने वाले अपराधियों का एकमात्र मकसद लक्षित पत्रकार की हत्या करना ही रह है.

हत्या की हर घटना के बाद, हत्या के कारणों को लेकर पुलिस की की एक पूर्व विचारित थ्यूरी सामने आती है और फिर मामला तफ्तीश और कानूनी प्रक्रिया में उलझ कर रह जाती है. किस मामले में किसको सजा हुई, कौन पकड़ा गया? बाद के दिनों में यह जानने में किसी को कोई रुचि नहीं होती. विमल के मामले में भी इससे इतर कुछ नहीं, वही सब होगा, जो अबतक होता रहा है. अब तक किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा है, आगे भी नहीं पड़ेगा.

हां, फर्क उस परिवार पर पड़ता है,बच्चे अनाथ और कोई सुहागन विधवा हो जाती है, जिंदगी की गाड़ी अचानक हिचकोले खाने लगती है. सत्ता और सरकार के अपने तर्क और विपक्ष के वितर्क हो सकते हैं, मातमपुर्सी और दिखावे की संवेदनाओं की बाढ़ आएगी, मगर जिन्हें हमने असमय खो दिया है, उनकी कोई भरपाई सम्भव नहीं है.

कितना विवश है “स्व” और कितना पाखंडी है यह “तंत्र”. यह कैसी तितिक्षा है कि हम सब केवल श्रद्धांजलि अर्पित करने की रस्मअदायगी तक सिमट कर रह गए हैं… असहनीय पीड़ा के साथ विमल को भावभीनी श्रद्धांजलि!

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